Thursday, May 26, 2011

1346 - Hindi Cover Story on Threats from UID Number


Subject: Hindi Cover Story on Threats from UID Number
published in May 2011 issue of Pratham Pravakta.

Please find below the Hindi Cover Story on Threats from UID Number

वारने हेस्ंिटग्स का सांड नामक कहानी में, 23 जून, 1757 के पलासी  की लड़ाई में मात खाए नबाब सिराजुद्दौला के वफादार सिपहसालार मोहनलाल के बेटी, चोखी वारेन हेस्ंिटग्स, बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जनरल से पूछती है कि ‘‘क्या ये बात सच है कि तुमने हमारे मुलुक का कोई नक्शा कागज पर बनवाया है?’’ वारेन हेस्ंिटग्स कहता है कि ‘‘अरे, तो इसमें ऐसी क्या बात है, चोखी! ये तो जरूरी था।’’ चोखी कहती है कि ‘‘ये ठीक नहीं हुआ। सोचो, जो काम तुमने किया, क्या वो पहले कोई और नहीं कर सकता था? सोचो, किसी ने ऐसा क्यों नही ंकिया?’’ चोखी कहती है- ‘‘ किसी ने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि कोई इस मुलुक को मिटाना नहीं चाहता था। हमारे यहां
जिसको मारना होता है, उसका बेसन का पुतला बनाकर उसे तलवार से काटते हैं।
 
जैसे-जैसे पुतला कटता जाता है, वह भी कटता जाता है, फिर पुतले को आग में डाल देते हैं। भसम कुंड में।’’ चोखी कहती है - ‘‘बुंतू को, अब्दुल कादिर का, मेरे को, सबको पता है कि तुम फिरंग लोग उस कागज पर घोड़ा दौडाएगा, उसको बंदूक से मारेगा, उसको पिंजरे में डालेगा, उसको चूस-चूसकर खाएगाऔर जब तुम लोग यहां से जाएगा तो वो नक्शा किसी अपने गुलाम को सौंप जाएगा।’’ यह सब कहने के बाद गर्भवती चोखी ने खंजर अपने पेट में भोंक लिया। यह बात कंपनी कानून के कारण हुए 1769-70 के भीषण अकाल के बाद की है और चिरस्थाई भूमि बंदोबस्त व्यवस्था लागू होने से पहले की है।
 
सन् 1785 के आसपास के  भारत के नक्शे, सन् 1975 और प्रणव मुखर्जी के 2009, 2010, और 2011 के बजट भाषा के बीच एक संबंध है जिसे अभी तक समझा नहीं गया है।
 

मार्च 1975 में कांग्रेस सरकार ने पूरे देश को एक संचार तंत्र में गुथने का
स्वप्न देखा था जिसके लिए नेशनल इनफॉरमेटीक्स सेंटर का गठन हुआ। यह सेंटर सूचना एंव संचार तंत्र का एक मुख्य केंद्र बन गया है।
 

आज उसी स्वप्न का मूर्त रूप भयावह संभावनाओं की तरफ बढ़ रहा है। भारत में रहने वाले हरेक व्यक्ति को एक विशिष्ट पहचान अंक (आधार संख्या) या युनिक आईडेंटीफिकेशन ;न्प्क्द्ध नंबर  मुहैया कराने की योजना शुरू कर दी गई है। यह ऐसे समय में हुआ जब ब्रिटेन सहित कई देशों ने इस योजना को रद्द कर दिया है।
 

सैम पिट्रोदा जो कि प्रधानमंत्री के सलाहकार हैं। एक कैबिनेट मंत्री के रैंक
में, पिट्रोदा योजना आयोग के तहत पब्लिक इंर्फोमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर एंड
इनोवेशंस ;च्प्प्प्द्ध  की योजना को एक नक्शे के जरिए क्रियान्वित कर रहे हैं।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य है कि भारत  के 53 केंद्रीय विभागों, राज्य सरकारों के 35 सचिवालयों, 640 जिला क्लेक्टरेटो और 2 लाख 50 हजार पंचायतों को एक सूत्र में पिरो कर केंद्रिकृत कर दिया जाए। च्प्प्प्  सूचनाओं का एक ऐसा नक्श एवं खजाना  तैयार कर रहा है जिसमें देशवासियों, नागरिकों, गांवों, शहरों, गलियों स्कूलो, अस्पतालों, कारखानों, खदानों, बाघों, नदियों, पार्कों, जंगलों, खेतों, रेलवे स्टेशनों, दफ्तरों, खनिजों, घरो आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध रहेगा।
 

इस प्रकार यह सारे सरकारी योजनाओं, जेलों, राशन व्यवस्था, खजानों जमीन के रिकार्डों आदि को भी इस सूत्र में बांधने की कवायद है।
 

पिट्रोदा कहते हैं कि, ‘यदि आप व्यक्तियों, जगहों एवं प्रोग्रामों को जंह
(चिन्हित) कर लेते हो तो सूचनाओं को सुविधापूर्वक संगठित कर जन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी।’’ यह सारी सूचनाएं सरकार के कुछ ‘विश्वसनीय’ लोगों और कुछ चुनींदा निजी कंपनियों के हाथों में होगी जिसके साथ समझौता हो चुका है।

इसी कड़ी में 1872 से जारी जनगणना के 15वें चरण में एक एक दूरगामी परिणाम वाली योजना राष्ट्रीय जनसंख्या  रजिस्टर ;छच्त्द्ध को भी जोड़ दिया गया है जो विशिष्ट पहचान अंक और पिट्रोदा के पब्लिक इंर्फोमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इनोवेशंस से संबंधित है। इन योजनाओं का रिश्ता कुछ अन्य प्रस्तावों एवं प्रस्तावित विधेयकों से भी है। 


इस तरह एक बार फिर निशानदेही करने और नक्शा बनाने के  पुराने सिलसिले को संसद और नागरिकों को अंधकार में रखकर आगे बढ़ाया जा रहा है।
 

इस संबंध में कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार द्वारा संसद की अवमानना की शुरुआत वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी नेे 2009 के अपने बजट भाषण से शुरू किया। इस भाषण के 64वें पैराग्राफ में यह कहा गया कि ‘‘भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण इंटरनेट पर एक ऐसा डेटाबेस बनाएगी जो देशवासियों को जैवमापन ;बायोमेट्रिकद्ध जानकारी के आधार पर उनकी पहचान करेगा। ‘इस विशिष्ट पहचान अंक की पहली किश्त 12 से 18 महीने में जारी कर दिए जाएंगे। इसके लिए हमने 120 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।’’ इससे पहले 2006  के आसपास विप्रो  कंपनी ने योजना आयोग को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसका शीर्षक था ‘‘भारतीय विशिष्ट पहचान की रणीनीतिक दृष्टि; स्टेªटजिक विजन ऑन दी यूआईडीएआईद्ध। यह रिपोर्ट गुप्तप्राय है। वीप्रो के लिए ही जून 2009 में रघुनंदन मूर्ती द्वारा लिखे दस्तावेज ‘‘क्या भारत को विशिष्ट पहचान अंक की जरूरत है? ;डज इंडिया नीड अ यूनिक आइडेटिफीकेशन नंबर?द्ध में ब्रिटेन के 2006 में पारित आईडेटिंटी कार्ड एक्ट का जिक्र किया गया जिसके द्वारा वहां पहचान पत्र बना। इसे उदाहरण के तौर पर इसलिए उधरित किया गया जिससे यह साबित हो कि ऐसी योजना भारत के लिए भी अनुकरणीय है।
 

28 जनवरी, 2008 को एक शक्ति प्रदत्त मंत्रीसमूह  ने राष्ट्रीय जनसंख्या
रजिस्टर  और भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण को इकट्ठा करने के लिए एक रणनीति बनाई। इस मंत्रिसमूह का गठन 4 दिसंबर, 2006 को नागरिकता कानून, 1955 के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना को इक्ट्ठा करने के लिए किया गया था। इसकी पहली बैठक 27 नंवबर 2007 को हुई। जिसमें पहचान संबंधी सूचना भंडार (डेटावेसद्ध के स्वामित्व के लिए संस्थागत ढांचा की जरूरत को  पहचाना गया। इस मंत्रिसमूह के चौथी बैठक जो कि 7 अगस्त, 2008 को हुई जिसकी अनुशंसाओं को एक सचिवों की समिति को सौंप दिया गया जिसने 4 नवंबर, 2008 को भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण के संबंध में यह निर्णय लिया कि शुरू में प्राधिकरण को एक एक्यूजिटिव ऑथोरिटी के रूप में अधिसूचना जारी करने का अनुमोदन किया। जिसको बाद में उचित समय पर स्टैचुट्री ऑथोरिटी बनाने का निर्णय लिया जाएगा। इस समय तक संसद की भूमिका का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। 28 जनवरी 2009 को प्राधिकरण को बनाने के संबंध में कैबिनेट सचिव द्वारा लिए गए 22 जनवरी की अनुंशसा जो मंत्रिसमूह के निर्णय के फलस्वरूप, योजना आयोग ने एक अधिसूचना जारी कर दी। जिसके अनुसार प्राधिकरण के कोर टीम में 115 अधिकारी होंगे। इसके बाद ही मुखर्जी ने इसका जिक्र अपने 2009 के बजट भाषण में किया।
 

2 जुलाई, 2009 को प्रधानमंत्री की भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण परिषद ने, इंफोसिस के पूर्व मुखिया नंदन निलेकणी को इस प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त करने का निर्णय किया जिसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त रहेगा। सरकार ने 22 अक्टूबर, 2009 को न्प्क् ।नजवतपजल पर एक कैबिनेट समिति भी बनाई जिसके ए.राजा. भी सदस्य थे।
 

13 नवंबर, 2009 को विकिलिक्स ने न्प्क्।प् भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण का एक 41 पृष्ठों वाला दस्तावेज का खुलासा किया था। जिसका शीर्षक है- ष्ब्तमंजपदह ं न्दपुनम पकमदजपजल दनउइमत वित मअमतल तमेपकमदज पद प्दकपंष्। इसके ऊपर लिखा है  ष्ब्वदपिकमदजपंस च्तवचमतजल वि जीम न्प्क्।प्ष् यह दस्तावेज में जानबूझ कर गलत बयानी की गई है। इसमें लिखा है कि ”सबसे पहले भारत सरकार ने देशवासियों को स्पष्ट पहचान देने का प्रयास 1993 में किया जा चुनाव आयोग द्वारा जारी फोटो पहचान कार्ड के रूप में 2003 में सामने आया जिसके जरिये भारत सरकार ने मल्टीपरपस नेशनल आइडेंटीटी कार्ड को स्वीकृति दे दी।“यह तथ्य पूर्णतः गलत है, क्योंकि 2003 में जो कार्ड चुनाव आयोग द्वारा जारी
 किया गया वह नागरिकों के लिए है न कि देशवासियों के लिए। यहां नागरिकों एवं देशवासियों के बीच को समझना अत्यंत जरूरी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसी विकिलीक्स द्वारा जारी दस्तावेज में लिखा है कि ”सभी देशवासियों को विशिष्ट पहचान जारी किया जा सकता है। यह विशिष्ट पहचान, पहचान का सबूत तो है मगर यह नागरिकता का द्योतक नहीं है।“ इसी दस्तावेज में लिखा है कि ”न्प्क्।प् को एक ैजंजनजवतल इवकल के रूप में एक विधेयक द्वारा बनाया जाएगा जिससे की वह अपना उद्देश्य पूरा कर सके।“गौरतलब है कि न्प्क्।प् ने इस दस्तावेज में यह वायदा किया था कि वह संसद द्वारा पारित विधेयक के द्वारा गठित होने के बाद अपने उद्देश्य को अंजाम देगा। यह दस्तावेज 13 नवंबर, 2009 का है। इससे यह साफ है कि न्प्क्।प् ने जानबूझ कर संसद की अवहेलना कर राज्य सरकारों, कंपनियों, बैंको, संस्थाओं आदि के साथ डव्न् पर हस्ताक्षर किया है। संसद की मंजूरी के बिना ही न्प्क्।प् यह दावा करती है कि न्प्क्।प् वह नियामक प्राधिकरण; तमहनसंजवतल ंनजीवतपजलद्ध होगा जो ब्मदजतंस प्क् क्ंजं त्मचवेपजवतल ;ब्प्क्त्द्ध का प्रबंधन करेगा, न्प्क् संख्या जारी करेगा, देशवासियों की जानकारी न्चकंजम करेगा और देशवासियों के पहचान की जब जरूरत पड़ेगी तब ंनजीमदजपबंजम करेगा“।
 

प्राधिकरण के अनुसार 12 अंकों वाली विशिष्ट पहचान संख्या या आधार संख्या के लिए चेहरे की तस्वीर, उंगलियों के निशान एवं नेत्रगोलक (परितारिका प्तपेेबंदद्ध को पहचान के लिए रिकार्ड किया जाएगा। इसी जैवमापन ;बायोमैट्रिक्सद्ध के जरिए  पहचान परियोजना को अंजाम दिय जाएगा। जैवमापन को ‘व्यक्ति की भौतिक, रासायनिक और व्यवहारजन्य विशेषताओं के आधार पर उसकी पहचान नियत करने का विज्ञान’’ बताया गया है। प्राधिकरण ने आंख के श्वेत पटल और पुतली के बीच स्थित परितारिका के लिए एक ‘जैवमापन मानक समिति का गठन किया ताकि पहचान के दोहराव (डुप्लीकेशन) को खत्म करने के उनके लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
 

अपनी रिपोर्ट में समिति यह खुलासा करती है कि ‘जैवमापन सेवाओं को निष्पादन के समय सरकारी विभागों और वाणिज्यिकों संस्थाओं द्वारा प्रमाणिकता स्थापित करने के लिए किया जाएगा।’’ यहां ‘‘वाणिज्यिक संस्थाओं को परिभाषित नहीं किया गया हैं वित्त मंत्री ने अपने 2009 के बजट भाषण में यह कहते हुए अपनी खुशी जाहिर किया कि ‘‘ निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर की उच्च प्रतिभा ने कदम बढ़ाकर अतरंग राष्ट्रीय महत्व योजनाओं के क्रियान्वयन जिम्मेदारी ली है।’’ इससे यह साफ होता है कि मुखर्जी फरवरी 2009 में ही जुलाई 2009 में होने वाले प्राधिकरण के चेयरमैन निलेकणी की तरफ इशारा कर रहे थे।  निलेकणी ने न्प्क्।प् का कार्यभार जुलाई 23, 2009 को संभाला उससे पहले वे 22 जुलाई, 2009 को तत्कालीन सूचना एवं संचार मंत्री ए. राजा से मिलकर न्क्प् योजना के क्रियान्वयन के लिए समर्थन मांगा था। यह बताना भी समीचीन है कि विश्व बैंक के मुखिया राबर्ट जॉलिक ने 4 दिसंबर 2009 को निलेकणी से मुलाकात की थी।
 

ऐसे में न्ै सुरक्षा विभाग एवं ब्प्। के द्वारा कमिशन किए गए एक रिपोर्ट
सितंबर, 2010 के निष्कर्ष के अनुसार जैवमापन पधति में पदीमतमदजसल ंिससपइसमश्  (असफलता अंर्तनिहित) है। प्राधिकरण के ही जैवमापन समिति में अपने अध्ययन में कहा है कि ‘‘2-5प्रतिशत लोगों के शरीर में कोई जैव मापन आंकडे़ नहीं है’’ जिसकी प्राधिकरण को जरूरत है।
 

मुखर्जी ने 2010 के बजट भाषण में भी इसका उल्लेख किया और कहा कि वे प्राधिकरण को ‘1900 करोड़ रुपए का प्रावधान वर्ष 2010-11 के लिए कर रहे हैं।’ इसी भाषण में उन्होंने टेक्नोलॉजी एडवाईसरी ग्रुप फॉर यूनिक प्रोजेक्टस के गठन की घोषणा की जिसका चेयरमैन प्राधिकरण के चेयरमैन को बनाया।
 

मुखर्जी की घोषणा का संदर्भ पुराना है। अप्रैल 2010 में विश्व बैंक स्1
प्कमदजपजपमे ैवसनजपवद से समझौता करता है और 30 जुलाई, 2010 को स्.1 कंपनी न्प्क्।प् के साथ डव्न् पर हस्ताक्षर करता है। इससे यह पर्दाफाश होता है कि असल में न्प्क् योजना ॅवतसक ठंदा  म.ज्तंदेतिवउ प्दपजपंजपअमे ;म्प्ज्द्ध  का हिस्सा जिसमें जीमाल्टो, आईबीएम, स्.1 , माइक्रोसॉफ्ट और फाइजर जैसी निजी कंपनियां भी शामिल है। बैंक की इस योजना के तहत वर्तमान में 14 ऐसी योजनाऐ विकासशील देशों में लागू है जो म.हवअमतदउमदज और म.प्क् से जुड़ा है। बैंक के इस पहल के लिए जो कार्यशाला हुई उसमें कहा गया है कि विकासशील देशों में म.हवअमतदंदबम असफल हो गया क्योंकि च्तपअंजम ेमबजवतए च्नइसपब ेमबजवत और बपजप्रमदे ेमबजवत अलग-अलग विद्यमान है। इसे सफल बनाने के लिए इनको बवदअमतहम (एकीकृत) करना पडे़गा। न्प्क् योजना इसी पहल का हिस्सा है।
 

स्1 कंपनी एक न्ै। की बायोमेट्रिक तकनीकी की कंपनी है जिसके बोर्ड पर वहां के खुफिया विभाग के निदेशक भी रहे है। यह कंपनी अपने वेबसाइट पर कहती है कि ‘‘ अमेरिकी एवं विदेशी मिलिट्री सर्विसेस, रक्षा और खुफिया तंत्र स्1 के समाधान एवं सेवा पर निर्भर है जिसकी मदद से वे मित्र एवं शत्रु की पहचान करते हैं।’’ ऐसी कंपनी को भारतवासियों के बारे में जो भी जानकारी न्प्क्।प् अपने सेंट्रल प्क् डाटा रिपोजिटारी ;ब्प्क्त् - सूचना भंडार) इक्ट्ठा करेंगे उसे
क्म.कनचसपबंजपवद के लिए मुहैया कराएगी। स्1 के ब्म्व् जो बराक ओबामा के साथ भारत आए थे ‘‘अमेरिकी सीमा के च्तपअंजप्रमक हंजमाममचमते में से एक है’’।
 

अक्टूबर 2007 में न्ै। की फर्जी वाड़ा जांच विभाग ने पाया कि स्1 कंपनी के
‘स्कैनर्स रूटीनी तौर पर फर्जी पहचान पत्रों को भी सही बताया।’’न्प्क्।प् ने न्ै। की ही कंपनी एक्सेंचर के साथ भी डव्न् पर हस्ताक्षर किया है।
यह कंपनी न्ै होमलैंड सेक्युरिटी के स्मार्ट बार्डरस प्रोजेक्ट पर काम कर रही
है। यह अपने वेबसाइट पर कहती है कि वह ;न्ैद्ध ‘होमलैंड सेक्युरिटी विभाग प्रति निष्ठावान है’’ और इसके समाधानों में ‘खुफिया बातों का संग्रह करना शामिल है। न्ै की नेशनल करप्सन इंडैक्स में स्1 और ।बबमदजनतम दोनों का नाम शामिल है।
 

।बबमदजनतम के बारे में लिखा है कि इसे न्ै। की सीमा के इर्द गिर्द ीप.जमबी ेबतममदपदह ेलेजमउ  लगाने का ठेका दिया गया था जिसे उंगलियांे के फिंगर प्रिंट पढ़ने वाले रिडर, आंखों को स्कैन और चेहरे को पहचानने के लिए साफ्टवेयर का प्रयोग कर अंजाम देना था लेकिन शुरूआत से ही योजना में बेक डाउन गलतियां और ‘सुरक्षा में चूक’ हुआ और वह ‘बार-बार काम करनेमें असफल रहा।’ विशिष्ट संख्या पहचान संख्या (आधार संख्या) या यूनिक आइडेंटिटी नंबर, की योजना पर फरवरी 2009 से काम जारी है। 2011 के बजट भाषण में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि ‘‘अभी तक बीस लाख आधार संख्यों को बांट दिया गया है और  1 अक्टूबर 2011 से रोजाना 10 लाख आधार संख्या बनाये जाएंगे।’’  3 दिसंबर, 2010 को अचानक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण विधेयक 2010 को संसद में पेश कर दिया। एडीटर्स गिल्ड की 2 दिसंबर, 2010 सभा में पत्रकारों ने निलेकणी से पूछा कि पूरे परियोजना का कुल अनुमानित बजट कितना है, उनके पास कोई जवाब नहीं था। इससे पहले 29 सितंबर 2010 को इस परियोजना का लोकापर्ण सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह के उपस्थिति में कर दिया।
 

देशवासियों को पहचान अंक मुहैया कराने का सफरनामा काफी पुराना है। गौर करने की बात यह है कि ऐसे समय में जबकि फरवरी, 2009 से लेकर अबतक विशिष्ट पहचान अंक के क्रिसावयन जारी करने का सिलसिला जारी है, अचानक दिसंबर 3, 2010 को सरकार  न्च्।
 

सरकार ने छंजपवदंस प्कमदजपपिबंजपवद ।नजीवतपजल व िप्दकपं ठपससए 2010 (भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण विधेयक, 2010 को राज्य सभा में प्रस्तुत कर दिया।
 

इससे पहले 24 दिसंबर, 2010 को केंद्रीय कैबिनेट ने इस विधेयक को संसद में रखे जाने को मंजूरी दिया। संसद की अवमानना है कि इससे बड़ी मिशाल क्या होगी कि संसद में इस विधेयक के पेश होने से पहले ही 29 सितंबर, 2010 को, इस परियोजना का लोकापर्ण कर दिया गया।
 

बावजूद इसके कि यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति, वित्त भारतीय पहचान विधेयक की जांच पड़ताल कर रही है, 2011 के बजट भाषण में मुखर्जी ने एक बार फिर संसद एवं संसदीय समिति की अनदेखी कर कहा ‘अभी तक 20 लाख आधार संख्याओं को बांट दिया गया और 1 अक्टूबर 2011 से, रोजाना 10 लाख (आधार) संख्या बनाए जाएंगे।
 

इसी बजट में यह भी जिक्र है कि प्राधिकरण के चेयरमैन ने टेक्नोलॉजी एडवाइजरी गु्रप ऑन यूनिक प्रोजेक्टस (विशिष्ट परियोजनाओं की तकनीकी सलाहकार समूह) ने अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्री को सौंप दी है। इस रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 26 पर ‘विशिष्ट पहचान अंक प्राधिकरण रणनीति सार’ ;न्प्क्।प् ैजतंजमहल वअमतअपमूद्ध का जिक्र है।
 

इसी रिपोर्ट में ‘समाधान ढांचा ;ैवसनजपवद ंतबीपजमबजनतमद्ध और नेशनल इनर्फामेशन युटीलिज ;छंजपवदंस प्दवितउंजपवद न्जपसपजपमेद्ध जिसका गठन ऐसी प्राइवेट कंपनियों के रूप में किया जाएगा जो जनहित ;च्नइसपब च्नतचवेमद्ध में करेगी और जिसका उद्देश्य मुनाफा कमाना तो होगा मगर मुनाफा बढ़ाना नहीं होगा।
 

ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन बातों का कोई जिक्र उस विधेयक में नहीं है जिसे संसद में पेश किया गया और जिसे संसदीय समिति परख रही है। इससे संसद को अंधकार में रखने जैसी स्थिति बनती है।
 

न्च्। सरकार का एक अंग कहता है कि विशिष्ट पहचान संख्या स्वैच्छिक
;टवसनउजंतलद्ध है, अनिवार्य नहीं। इसी सरकार का दूसरा अंग कहता है कि यह अनिवार्य है। भारतवासियों को अब तक यह नहीं बताया गया है कि यह संख्या, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्ट्रर ;छत्च्द्ध ड्राफ्ट लैंड टाइटलिंग ;क्तंजि स्ंदक
ज्पजसपदह ठपसस 2010द्ध विधेयक ड्राफ्ट पेपर ऑन प्राइवेसी बिल, 2010, ड्राफ्ट क्छ।  प्रोफाइलिंग बिल, 2007 पब्लीक इनफॉरमेशन एंड इनोवेशन्स, नेशनल इंटेलिजेंस ग्रीउ और वर्ल्ड बैंक इन्ट्रांसफार्म इनिसिएटीव से स्पष्ट जुडा है।
 

ड्राफ्ट लैंड टाइटलिंग बिल, 2010 ;क्तंजि स्ंदक ज्पजसपदह ठपससख् 2010द्ध में श्न्दपुनम चतवचमतजल पकमदजपपिबंजपवद दनउइमतश् विशिष्ट सम्पति पहचान अंक का प्रावधान है। निलेकणी अपनी किताब श्प्उंहपदपदह प्दकपंश् (इमेजिनींग इंडिया) में लिखते है कि राष्ट्रीय पहचान यदि सभी देशवासियों के पास होगा तो एक कॉमन लैंड मार्केट ;बवउउवद संदक उंतामजद्ध साझा भूमि बाजार तैयार हो जाएगा जिससे गरीबी उन्मूलन में मदद मिलेगी। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के चिरस्थाई भूमि व्यवस्था की याद दिलाता है। जिससे ऐसे जमींदारों की फौज का जन्म हुआ  जो हमेशा के लिए कंपनी की वफादार हो गए और आज भी हैं। इस संबध में निलेकणी हरनेंडो डी सोटो की किताब,‘पूंजी का रहस्य-पूजींवाद क्यों पाश्चात्य देशों में सफल रहा और अन्य जगहों पर असफल’ का भी हवाला दिया है। वो लिखते हैं कि अगर ऐसे पहचान की व्यवस्था होगी तो संविधान के मंशा के विपरीत संपति का मौलिक अधिकार वापस मिल जाएगा। वर्तमान में सम्पति का अधिकार एक कानूनी अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं। इससे यह साफ होता है कि विशिष्ट पहचान अंक को असल इरादा यह है कि देश में सम्पति आधारित प्रजातंत्र लाया जाय जिसका जिक्र वाशिंगटन कानसेन्सस में भी है।  यह एक भावी विश्व सरकार बनाने की प्रक्रिया प्रतीत होती है जिसे भविष्य में तकनीकी मदद से संचालित किया जाएगा।
 

नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टरद्ध के संबंध में यह जानना बहुत जरूरी है कि इसमें और जनगणना में काफी फर्क है। यह दोनों अलग अलग चीज है।
 

जनगणना के माध्यम से जनसंख्या, साक्षरता, शिक्षा, आवास, घरेलू सुविधाएं आर्थिक गतिविधि, शहरीकरण, प्रजनन दर, मृत्यु दर, भाषा, धर्म और प्रवासन आदि के संबंध में बुनियादी आंकड़ों को इक्ट्ठा किया जाता है जिसके आधार पर केंद्र व राज्य सरकारें योजनाएं बनाती है और नीतियों का क्रियान्वयन करती है। यह ब्मदेने ।बजए 1948 के तहत होता है।
 

इससे हटकर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ;छच्त्द्ध पूरे देश के नागरिकों के पहचान संबंधी आंकड़ों का समग्र भंडार तैयार करने का काम करेगा। इसके तहत व्यक्ति का नाम, उसके माता, पिता पति/पत्नी का नाम, लिंग, जन्म स्थान और तारीख, वर्तमान वैवाहिक स्थिति, शिक्षा राष्ट्रीयता, पेशा, वर्तमान और स्थायी निवास का पता जैसी सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा। इस आंकड़ा भंडार ;क्ंजंइंेमद्ध में 15 साल की उम्र से ऊपर सभी व्यक्तियों की तस्वीरें और उनकी अंगुलिों के निशान भी रखे जाएंगे। शक्ति प्रदत्त ;म्उचवूमतमकद्ध मंत्रीसमूह के 28 जनवरी, 2008 के दूसरे बैठक में छच्त् और न्प्क्।प् को इक्ट्ठा करने के लिए एक रणनीति भी बनाई है। यह प्रधानमंत्री की सहमति से हुआ है। छच्त् का गठन ब्पजप्रमदेीपच ।बजए 1955 (नागरिकता कानून 1955) और ;बपजप्रमदेीपच तनसमे 2003) के तहत हुआ है।
 

जनगणना के तहत संग्रह की गई जानकारी को गोपनीय रखने की एक कानूनी जिम्मेवारी है मगर छच्त् के तहत एकत्रित जानकारी को विशिष्ट पहचान अंक से जोड़ा जाएगा जिससे सारे देशवासियों की सूचना विश्व बाजार में किसी भी समय उपलब्ध हो जाएगा। ऐसे में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के जुड़ने से एक भयावह शक्ल अख्तियार कर चुका है। जनसंख्या रजिस्टर छच्त् के बारे में यह गौर करना अत्यंत जरूरी है कि जनगणना कानून, 1948 ;बवदेने ।बज, 1948द्ध  के तहत नहीं हो रहा है। यह दूरगामी कदम बपजप्रमदेीपच ।बजए 1955 (नागरिकता कानून, 1955) एवं ब्पजप्रमदेीपच; त्मेपेजतंजपवद व िबपजप्रमदे ंदक प्ेेनम व िछंजपवदंस प्कमदजपजल बंतकद्ध त्नसमेख् 2003 यानी नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र को जारी हेतू नियम 2003 यिम के तहत हो रहा है।
 

सवाल उठता है कि इससे क्या फर्क पड़ता है। जवाब है कि जनगणना की जानकारी को गुपत रखने की कानूनी बाध्यता है जो कि राष्ट्रीय जनसंख्या कानून में नहीं हैं यहां स्पष्ट उद्देश्य है कि डक्ष्त् की जानकारी को विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को उपलब्ध रहेगा।
 

जनगणना कानून, 1955 ;बवदेने ।बजए 1955द्ध की धारा 15 से साफ है कि जो जानकारी जनगणना नियामक को दी जाती है वह ‘‘जांच के दायरे से बाहर है तथा सबूत के रूप में मान्य नहीं है।’’ ;श्छवज वचमद जव पदेचमबजपवद दवत ंकउपेेपइसम पद मअपकमदबमश्द्ध जनगणना कानून, 1955 ;बमदेने ।बज, 1955द्ध राज्य सत्ता को जनसंख्या के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है, यह साफ है कि यह व्यक्तियों की जानकारी से संबंधित नहीं है’’।
 

यूपीए सरकार द्वारा यह पहले ही कबूल किया गया है कि जो जानकारी घर-घर जाकर सर्वे द्वारा संग्रह किया जाएगा और जो जैवमापन ; ठपवउमजतपबद्ध के आंकडे़ इक्टठे किए जाएंगे। वह न्प्क् क्ंजंइंेम (विशिष्ट पहचान अंक को सूचना भंडार) में समाहित कर दिया जाएगा।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि गृहमंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल एवं नेशनल कमीशनर डा. सी.चंद्रमौली की अगुवाई में इस बार  बमदेने 2011श् जनगणना 2011 और; छंजपवदंस च्वचनसंजपवद त्महपेजमत ;छच्त्द्ध राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की शुरूआत राष्ट्रपति द्वारा 1 अप्रैल, 2010 को हुई। जनगणना काकाम हो चुका है और जनगणना 2011 के मुताबिक भारत की कुल आबादी  121 करोड़ है। इसके अनुसार ‘भातर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। पहले स्थान चीन का है। इस कार्य में देश के 640 जिलो, 5,767 तहसीलों, 7,742 शहरों और 6 लाख से ज्यादा गांवों और वहां के लोगों को मापा गया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में देशवासियों को यह नहीं बताया गया कि इस बार का जनगणना पहले वाले से भिन्न है क्येंकि यह ह न्प्क्  संख्या/कार्ड से स्वतः जुड़ जाएगा। देशवासियों को इस संबंध् में जानबूझ कर अंधेरे में रखा गया है।
 

15वां जनगणना और पहला छच्त् दुरगामी संभावनाओं को अपने गर्भ में समेटे हुए है।
 

जनगणना की शुरूआत अंग्रजी सरकार द्वारा1872 में हुई थी। यह प्रश्न अनुत्तरित है कि क्या अंग्रेजी सरकार ने यह काम भारतवासियों के हित में किया था या अपने हित में। इस  जनगणना से अंग्रेजी सरकार के क्या हित सधे थे। क्या इसकी समीक्षा हुई है? क्या जनगणना के अंग्रेजी सरकार के लक्ष्यों को बदल दिया गया। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ;छत्च्द्ध भी प्राधिकरण की तर्ज पर तस्वीर, उंगलियों के निशान और आखों की परितारिका के आंकड़ों को इक्ट्ठा करेगा। नागरिकता कानून , 2003 विशिष्ट पहचान अंक की स्वैच्छिकता के दावे की पोल खोल देता है। यह कानून हरेक व्यक्ति एवं ‘परिवार के मुखीया’ को ‘मुखबीर’ ; पदवितउवेजद्ध के रूप में वर्गीकृत कर देता है। जिसे घर के प्रत्येक व्यक्ति के बारे में हालिया जानकारी छच्त्  को उपलब्ध कराना होगा। अन्यथा उसे दंडित किया जाएगा।
 

एक ऐसे समय में जबकि विशिष्ट पहचान अंक नाम की इमारत बन चुका है और उसकी नीवं केंद्र और राज्य के बहतेरे परियोजनाओं में डाले जा चुके थे, तब जून के आखिर में प्राधिकरण ने अपने वेबसाइट पर एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा रखां भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण विधेयक, 2010 पर टिप्पणी करने के लिए 2 सप्ताह दिया।
 

13 जुलाई, 2010 को इसकी आखिरी तारीख थी।
 

इस विधेयक की धारा 33 में लिखा है कि किसी भी सक्षमत अदालत द्वारा मांग जाने पर प्राधिकरण किसी भी देशवासी के बारे में जानकारी मुहैया करा देगा। इसी धारा में यह भी लिखा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में भी इन जानकारियों का खुलासा किया जाएगा यदि संयुक्त सचिव रैंक या उसके समकक्ष रैंक का अधिकारी संबंधित मंत्री से अनुमति ले लेता है। प्राधिकरण द्वारा मंगाइ्र गई एक रिपोर्ट में भी यह लिखा गया है कि राज्य सत्ता के अलावा गेर राज्य सत्ता का खुले रूप से विशिष्ट पहचान अंक योजना जुड़ना डर पैदा करता है। यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि इस योजना से नागरिकों के लगातार सरकार की नजर पर रहने और इस डर का कुछ तबकों द्वारा इस्तेमाल एक मुद्दा है।
 

पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं पूर्व चेयरमैन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
न्यायमूर्ति राजेंद्र बाबू ने नवंबर 2009 में ही यह कहा था कि संविधान
देशवासियों को निजता एवं सम्मान की गारंटी देता है जिसे विशिष्ट पहचान अंक योजना में नजर अंदाज किया गया है।
 

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर गृह मंत्रालय के तहत नेशनल इंटेलिजेंस ग्रीड
(राष्ट्रीय गुप्तचर समुच्चय) की स्थापना इसलिए हुई कि देश के 21 डेटावेस (सूचना भंडार) को एकसूत्र में पिरो दिया जाए जिसे 11 सुरक्षा एवं खुफिया विभाग के लिए मुहैया कराने का काम शुरू है। 8 दिसंबर, 2009 को प्दकव.।उमतपबं ब्ींउइमत व िब्वउउमतबमद्ध  द्वारा आयोजित कार्यक्रम में श्न्प्क् चतवरमबज  प्ेेनमे ंदक बींससमदहमेश्  विषय पर भाषण दिया। वहां उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर कहा कि ‘जब सबसे पास न्प्क् होगा तो जिसमें अभी कई साल लगेंगे। तो किसी को भी पहचाना जाएगा। उस समय किसी के पास न्प्क् संख्या नहीं होगी तो मुद्दा बन जाएगा। और तब तक के कानूनी संरचना में न्प्क् संख्या से किसी को भी जतंबा किया जा सकेगा। इसलिए मैं सोचता हूं सुरक्षा का फायदा।’ आगे उन्होंने ने कहा ‘एक ऐसा समय भी आ सकता है जब होटल में कमरा लेने के लिए भी न्प्क् संख्या की जरूरत होगी। एक बार किसी व्यक्ति को यह संख्या मिल गई तब शक होने पर उस तक पहुंचा जा सकता है। ऐसा क्यों है कि बावजूद इसके कि एक लोकतांत्रिक चुनाव में जिसे ‘पहचान’ परियोजना को नकार दिया गया है उसी को भारत में लाया जा रहा है।
 

ब्रिटेन की वर्तमान सरकार इस वायदे पर चुनाव जीत कर बनी है कि वह इस परियोजना को रद्द कर देंगे। इस सिलसिले में एक साथ दो विधेयक भारत एवं ब्रिटेन के संसद में पारित करने के लिए रखे गए है। ब्रिटेन की सरकार अपने यहां लागू प्कमदजपजल ब्ंतके ।बजए 2006  जिसके जरिए पहचान पत्र को लागू किया था। उसे निरस्त करने के लिए ज्ीम प्कमदजपजल क्वबनउमदज ठपसस 201.11  को  संसद में पेश किया है। ब्रिटेन की नई गृह सचिव, टेरेसा मेय ने कहा है कि ‘‘राष्ट्रीय पहचान पत्र सरकार की बदनियती की नुमायंदगी करता हैं यह ताका-झाकी करने वाला एवं धमकाने या धौंस जमाता है। हय बेकार एवं महंगा है। यह मानव अधिकार प हमला है और यह कोई महान अच्छाई का वायदा नहीं करता। इसी बीच ब्रिटेन पूर्व गृह सचिव डेविड ब्लंकेट जो कि इस योजना के जनक थे ने भी पहचान कार्ड योजना को कुड़ेदान में डाल देने की बात कही है। ब्रिटिश संसद वहीं संसद है जिसने प्दकपं प्दकमचमदकमदबम ।बजए 1947 को पारित कर भारत को आजाद किया था।
 
इस नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड विभाग के मुखीया कैप्टन रघु रमन है। इससे पहले वे महींद्रा स्पेशल सर्विसेस गु्रप के मुखिया थे और बाम्बे चैम्बर्स ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कार्मस  की सेफ्टी एंड सेक्युरिटी कमिटि चेयरमैन थे। इनकी मंशा का पता इनके द्वारा ही लिखित दस्तावेज ‘असंवेदनशील मंदबुधि वाले लोगों का देश’ ;‘ए नेशन ऑफ नम्ब पिपुल’ से चलता है। इसमें इन्होंने लिखा है कि भारत सरकार देश को आंतरिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं कर सकती। 

इसलिए कंपनियों को अपनी प्राइवेट टेरीटोरीयल आर्मीस’ (निजी सेना) का गठन करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि ‘कारपोरेटस’  सुरक्षा के क्षेत्र में कदम बढ़ाए। इनका निष्कर्ष यह है कि ‘यदि वाणिज्य सम्राट ;बवउउमतबपंस ब्रंतेद्ध अपने साम्राज्य को नहीं बचाते है तो उनके आधिपत्य पर आघात हो सकता है।’’ इसी नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड के बारे में 3 लाख कंपनियों की नुमांयदगी करने वाली एसोसिएटेउ चैम्बर्स एंड कार्मस (एसोचेम) और स्वीस कंसलटेंसी के के. पी.एम.जी के एक दस्तावेज ‘होमलैंड सिक्युरिटी इन इंडिया’ में यह खुलासा है कि विशिष्ट अंक ;न्प्क्द्ध संख्या/आधार संख्या इससे जुड़ा हुआ है।
 
ह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट, 2010 में यह दावा किया गया है कि नेशनल
इंटेलिजेंस ग्रीड ‘सक्षम अधिकारी से अनुमति से 2011 में  शुरू किया जाएगा।
कैबिनेट इस संबंध में विस्तृत योजना रिपोर्ट ;क्मजंपसमक च्तवरमबज  त्मचवतजद्ध  कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्युरिटी को स्वीकृति हेतु सौंप दिया जाएगा। इसं संबंध में बजट में 40.6 करोड़ रुपए का प्रावधान है।
 
यदि गौर पूर्वक 2011 के भाषण को पढ़ा जाए तो कम-से-कम सात ऐसे पैराग्राफ है जिसमें परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से विशिष्अ पहचान अंक जिक्र है जिसका श्ेवसनजपवदे ंतबीपजमबजनतमश् के संदर्भ में विश्लेषण होना बाकी है। बजट में सब्सीडी के संबंध यह कहा गया है कि सरकारी खर्च को प्रभावकारी बनाने के लिए किरोसीन एवं रासायनिक खाद को गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को सीधे नगद भुगतान की दिशा में चरणबद्ध तरीके से कदम बढ़ाया जाएगां ऐसी व्यवस्था की प्रभावशीलता का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है अगर विशिष्ट पहचान अंक से होने वाले फायदे के दावों में भी नगद भुगतान पद्धति अपनाने की बात की गई है।
 
वित्त क्षेत्र में कानूनी सुधार की बात करते हुए, बजट में न्यायमूर्ति
बी.एन.कृष्णा की अध्यक्षता में बने (फाइनेंसियल सेक्टर रिफार्म कमीशन से हय अपेक्षा की गई है कि वो 24 माह के अंदर वित्त क्षेत्र के कानूनों, नियमों
प्रावधानों को परिस्कृत ;ैजतमंउसपदमद्ध करेंगे। इस संबंध में कंपनिस विधेयक, 2009 उल्लेखनीय है जिसे नागरिक समाज एवं शिक्षा जगत ने अभी तक नहीं परखा है। 

11 जनवरी, 2011 बिजनेस स्टैडंर्ड ने रिपोर्ट किया कि वित्त मंत्री ने स्वेच्छा से यह मांग की है कि विश्व बैंक और और इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड भारतीय वित्त क्षेत्र की स्वास्थ्य की जांच करें। बैंक विकासशील देशों में यह काम अपने फानंसियल जो 1999 से जारी है कि सेक्टर एसेसमेंट प्रोग्राम तहत करता है। इस घोषणा को 23 अप्रैल, 2010 को जो स्.1 प्कमदजपमे ैवसनजपवदे (एल वन आईडेंटीस सॉल्युसन्स) और विश्व बैंक के साथ जो समझौता ;डव्न्द्ध हुआ इससे जोड़कर देखना चाहिए जिसमें विकासशील देशों के वित्त मंत्री एवं संचार मंत्री मौजूद थे। मुखर्जी विश्व बैंक समूह के बोर्ड ऑफ गर्वनेस पर रहे है।

 बजट में नेशनल नॉलेज नेटवर्क का जिक्र है जिसे निलेकणी की ही तरह कैबिनेट रैंक के सैम पिट्रोदा, योजना आयोग से ही च्नइसपब प्दवितउंजपवद प्दतिंेजतनबजनतम - प्ददवअंजपवदेद्ध ;च्प्प्ज्द्ध के जरिए क्रियान्वित कर रहे हैं। मार्च 2010 में स्वीकृत, नेशनल नॉलेज नेटवर्क 1500 उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थानों को ऑप्टीकल फाइवर से जोड़ने के लक्ष्य सेकाम कर रहा है। इस साल 190 संस्थानों को जोड़ा जाएगा। बजट में कहा गया है कि छज्ञछ का बवतम डंतबी 2011 तक तैयार होगा जिससे 1500 संस्थानों से जुड़ाव मार्च 2012 तक हो जाएगा। पिट्रोदा ने स्पष्ट किया है कि उनकी यह योजना भी न्प्क् योजना से संबंधित है।
 
ध्यान योग्य बात यह है कि न्ै में भी न्प्क् जैसे योजना का पुरजोर विरोध हुआ है। वह इसे त्थ्प्क् ;त्ंकपव थ्तमुनमदबल प्कमदजपपिबंजपवदद्ध कहा जाता है।
 
न्प्क् एक 12 नम्बर का अंक है जिसे ठपवउमजतपब (जैवमापन) आंकड़े के आधार पर बनाया गया है। त्थ्प्क् भी ठपवउमजतपब विशेषता के आधार पर प्रस्तावित था जिसे 96-बिट कोड द्वारा बनाया गया। यह आवाज की विशिष्टता के ऊपर निर्भर था जिसे वहा के रियलदृप्क् पहल ;त्म्।स्.ज्क् पदपजपंजपअमद्ध से  जोड़ने का प्रयास हुआ मगर न्ै।
 
के नागरिकों और राज्यों के विरोध के कारण यह शुरू नहीं हो सका।
भारत में राज्य सरकारों की न्प्क् योजना के दूरगामी परिणाम की अनभिज्ञता
चिंताजनक है। देश के 28 राजयों एवं 7 केन्द्रशासित क्षेत्रों  में से अधिकतर ने
न्प्क्।प् के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया है। कानूनविद बताते है कि इस समझौता को नहीं मानने से भी राज्य सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। पूर्व न्यायाधीश, कानूनविद और शिक्षा शास्त्री यह सलाह दे रहे है कि न्प्क् योजना से देश के संघीय ढांचे को एवं संविधन प्रदत्त मौलिक अध्किारों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। राज्य सरकारों, केन्द्र के कई विभागों और अन्य संस्थाओं को चाहिए कि न्प्क्।प् के साथ हुए डव्न् की समग्रता में समीक्षा करे और अनजाने में अधिनायकवाद की स्थिति का समर्थन करने से बचे।
 
निलेकणी ने स्वयं यह घोषणा की है कि न्प्क् परियोजना दुनियातो सूचनाओं
सुविधापूर्वक संगठित कर जन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी।“ यह सारी सूचनाएं सरकार के कुछ ‘विश्वसनीय’ लोगों और कुछ चुनिंदा कंपनियों के हाथों में होगी जो प्राइवेट कंपनियों के लोकहितकारी प्रयोगों से अचंभित है।
 
यदि टैग (चिन्हित) करना इतना ही अच्छा प्रयोग है तो इस बात से हैरानी होती है कि जब न्ै। के ट्राई वैली विश्वविद्यालय कैलिफोर्निया में भारतीय छात्रों को रेडियो कॉलर से टैग किया गया तो पूरे देश में आक्रोश क्यो फैला। देशवासियों के आक्रोशित भावना के फलस्वरूप, 12 फरवरी, 2011 को विदेश मंत्री, एस.एम. कृष्णा ने घोषणा किया कि, ”आपको यह जानकर खुशी होगी कि कुछ विद्यार्थियों के ऊपर से रेडियो कॉलर हटा लिया गया है और अन्य के मामलों पर भी कार्यवाही हो रही है।“
 
न्ै। में भारतीय दूतावास इस प्रकरण को निपटाने हेतु न्ै के होमलैंड सिक्युरिटी विभाग को साथ काम कर रहा है। इस संबंध में 15 मार्च, 2011 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने सूचित किया है कि आयोग ने 7 फरवरी, 2011 को विदेश मंत्रालय को नोटिस भेजा था। ज्ञात हो कि 18 भारतीय विद्यार्थियों के पैरों में रेडियो कॉलर लगाया गया था उनमें से 12 के रेडियो कॉलर हटा लिए गए है। आयोग ने सूचित किया है कि भारत सरकार ने न्ै सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया है। विदेश सचिव, निरूपमा रॉव ने कहा है कि ”हम रेडियो कॉलर को अस्वीकार करते है और इसे तत्काल हटाया जाना चाहिए।“
 
यह भी हैरानी का विषय है कि देशवासियों के पहचान के लिए न्प्क् संख्या की जरूरत को कब और कैसे स्थापित कर दिया गया। पहचान के संबंध में यह 16 वा (सोलहवा) प्रयास है। भारतीय चुनाव आयोग प्रत्येक चुनाव से पहले यह घोषणा करता है कि यदि किसी के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है तो वे अन्य 14 दस्तावेजों में से किसी का प्रयोग कर सकते है। ये वे पहचान के दस्तावेज है जिससे देश में प्रजातंत्र एवं संसद को मान्यता मिलती है। ऐसे में इस 16 वें पहचान की कवायद का कोई ऐसा कारण नजर नहीं आता जिसे लोक शाही में स्वीकार किया जाए।

न्प्क्।प्ए 3 दिसंबर, 2010 को छप्।प् ठपससए2011 में आने और 10 दिसंबर, 2010 को संसदीय समिति को सौंपने से पहले और उसके बाद भी कार्य कर रही है और विधेयक के पारित होने का इंतजार किए बगैर यह घोषणा कर चुकी है कि ”अब तक 20 लाख न्प्क् संख्या/आधार संख्या जारी हो चुके है और 1 अक्टूबर, 2011 से प्रत्येक दिन 10 लाख आधार/न्प्क् संख्या बनाए जायेंगे।“ इस तरह पारदर्शिता के लिए एक खास तरीके से स्टेज तैयार कर लिया गया है।
 
सवाल यह है कि जब यह सब यू भी हो रहा है तो संसद के रबर स्टैम्प की क्या भूमिका है। क्या विधेयक को संसद में पेश करना एवं संसदीय समिति को सौंपना महज खानापूर्ति नहीं हैं। विधेयक की धारा 57 तो हरेक हद को पार कर जाती है। इसमें धारा लिखा है- ।दलजीपदह कवदम वत ंदल ंबजपवद जंामद इल जीम ब्मदजतंस ळवअमतदउमदज ैंअपदहे नदकमत जीम त्मेवसनजपवद व िळवअमतदउमदज व िप्दकपंए च्संददपदह ब्वउउपेेपवद इमंतपदह दवजपपिबंजपवद दनउइमत ।.43011ध्02ध्2009.।कउपद प्ए कंजमक 28जी श्रंदनंतलए 2009ए ेींसस इम कममउमक जव ींअम इममद कवदम वत जंामद नदकमत जीम बवततमेचवदकपदह चतवअपेपवदे व िजीपे ।बजण्ष् इसका मतलब है कि 28 जनवरी, 2009 से लेकर विधेयक पारित होने तक न्प्क्।प् ने जितने कर्म-कुकर्म किए है उस पर संसद को केवल मुहर लगानी। असल में इसकी भी जरूरत नहीं है क्योंकि कांग्रेस नीत न्च्। सरकार की मनमानी की दास्तान की फेहरिस्त काफी लंबी है। मगर मुख्य विपक्ष की अकर्मण्यता भी परेशान करने वाला है। मुख्य विपक्षी दल के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अभी तो वे इस छप्।प् विधेय के खिलाफ है और संबंधित समिति के सदस्य भी निलेकणी के वर्ताव एवं रवैये से क्षुब्ध है मगर जिस तरह परमाणु त्रासदी विधेयक पर दल के मुखियाओं ने आखिरी क्षण में करवट बदल दी थी उससे सतर्क रहने की जरूरत है। मुख्य विपक्षी दल एवं पक्ष की मिलीभगत के कारण ही फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद उनकी बोलती बंद है। 

अब वे किसी हैसियत से उस पर बयान देंगे। यदि छप्।प् विधेयक पारित होता है तो विपक्ष की और विपक्षी राज्य सरकारों की बोलती हमेशा के लिए बंद हो जाएगी क्योंकि न्प्क्।प् और च्प्प्प् ऐसी व्यवस्था कर रहे है जिससे विपक्ष, एवं देशवासियों की आवाज अप्रसांगिक हो जाएगा। निलेकणी, पिट्रोडा उसी कड़ी के हिस्सा है जिसमें लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल च्ण्क्ण् ज्ण् ।बींतल एवं पूर्व ब्टब् च्ण्श्रण् ज्ीवउंे  आते है जिनके नियुक्ति के बारे में विपक्ष की राय को बेमानी माना गया है। और यह कड़ी ए. राजा से भी जुड़ी है क्योंकि वे कैबिनेट कमिटी ऑन न्प्क्।प् के सदस्य थे।
 
यह ध्यान देने लायक है कि जब उनसे न्प्क् का नेशनल इंटेलिजेंस  के संबंध में
पूछा गया तो उनका जवाब था- श्छव ब्वउउमदजश् शायद उनकी जुबान ने उनका साथ छोड़ दिया। उनका यह जवाब भी पूरी परियोजना पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाता है।
 
मानव अधिकार के मुद्दे पर काम कर रहे लोगो का, कानूनविदो, शिक्षाशास्त्रियों  एवं पूर्व न्यायधीशो की यह मांग है कि इस परियोजना का तत्काल रोक देना चाहिए जैसा कि ब्रिटेन और अन्य देशों ने भी किया है।
 
निलेकणी, पिट्रोडा, कैप्टन रघुरमन, चन्द्रमौली देशवासियों को अंधकार में रखकर अपने-अपने एक दूसरे से जुड़े हुए उद्देश्य को अंजाम दे रहे है। ज्ञात हो कि कैबिनेट मंत्री के रैंक में काम कर रहे निलेकणी और पिट्रोदा ने पद और गोपनीयता की शपथ की परंपरागत सिधांत के विपरीत आचरण किया है। चंद्रमौली के सरकारी वेबसाइट पर यह आश्वासन दिया गया है कि ष्ब्मदेनेष् के तहत संग्रह  किये गये सूचना को गुप्त रखा जाएगा और किसी भी सरकारी या निजी संस्था से इसे साझा नहीं किया जाएगा। छच्त् के तहत इकट्ठा किए गए कुछ सूचनाओं को स्थानीय इलाकों में प्रकाशित किया जाएगा जिसे च्नइसपब ेबतनजपदल के लिए और वइरमबजपवदे करने के लिए आमंत्रण दिया जाएगा।
 
जब ब्मदेने का आंकड़ा छच्त् के पास होगा जिसे प्रकाशित भी किया जाएगा अैर उसके पास न्प्क् संख्या के सूचना का भंडार भी होंगे तो इसमें उस कानूनी बाध्यता का पालन कहां हुआ जिसके अनुसार, इसे गुप्त रखना था।
 
न्प्क् संख्या से होने वाले च्क्ै और छत्म्ळ। के सुधार के दावों को ठोस तर्क के
आधार पर खारिज कर दिया गया है। जिसे अन्य स्थापित अर्थशास्त्रीयों  ने भी खोखला दावा बताया है। जन स्वास्थ्य के बारे में न्प्क् संख्या से होने वाले लाभ के दावों की पोल भी खुल गई है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सोशल मेडिसीन एंड क्मयुनिटी हेल्थ के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं वर्तमान में प्रोफेसर डॉ. मोहन राव ने स्वास्थ्य मंत्रालय को इससे होने वाले दुष्परिणाम के बारे में आगाह किया है। न्प्क्।प्  के एक पेपर पर टिप्पणी करते हुए वे कहते हैं कि मरीजों के रोगों के संबंध में संग्रह की गई जानकारियां गुप्त रखी जाती है।
 
न्प्क् संख्या से उसका खुलासा हो जाएगा जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
2009-19 के आर्थिक सर्वे में लिखा है कि यूआईडी पधति 2012 से लागू होगी तबतक कूपन व्यवस्था के जरिए जनवितरण प्रणाली को सस्ते अनाज आवंटित करने की जरूरत है।
 
गौरतलब है कि केद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्त की संसदीय समिति को मार्च 2011 में बताया कि अगले गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की जनगणना को विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से जोड़ दिया गया है जिससे ग्रामीण गरीबी रेखा व्यक्ति को सीधे ही यूआईडी संख्या मिल जाएगी। शिक्षाविद् और जनस्वास्थ्य के विशेषज्ञ इस व्यवस्था को तर्क संगत नहीं मानते हैं।
 
निजता से संबंधित ड्राफ्ट विधेयक पर एक डिसकशन पेपर लाया गया है जिसमें स्पष्ट किया गया है, कि केन्द्रीकृत डेटावेस से देशवासियों की सूचनाओं की गोपनियता खत्म हो जाएगी।
 
इसका चरित्र मतदाता सूची या टेलीफोन डायरेक्ट्री जैसा है। छच्त् के तैयारी के बाद, डेटाबेस को ”सिर्फ सरकार के अंदर प्रयोग किया जाएगा।“ यह सरासर झूठा आश्वासन और विश्वासघात है।
 
चन्द्रमौली अपने इसी वेबसाईट पर यह खुलासा भी करते है कि ”वे आंकड़े जो छच्त् के तहत इकट्ठा किये जाएंगे, उन्हें न्प्क्।प् के द्वारा कम.कनचसपबंजपवद कराया जाएगा। इस कम.कनचसपबंजपवद के बाद न्प्क्।प्ए न्प्क् संख्या जारी करेगा। यह न्प्क् संख्या छच्त् का हिस्सा होगा और छच्त् कार्डों पर न्प्क् संख्या अंकित होगा।“ न्प्क्।प् पहले ही कम.कनचसपबंजपवद के लिए 31 जुलाई, 2010 को अमेरिकी निजी कंपनियां स्प्ए ।बबमदजनतम और अन्य के साथ कम.कनचसपबंजपवद के लिए डव्न् कर चुकी है।
 
यह भी झूठा दावा है कि ब्मदेने के द्वारा इकट्ठा किए सूचना को गुप्त रखा जाएगा, चंद्रमैली के ;ब्मदेनेपदकपंण्हवअण्पदद्ध वेबसाईट पर ही यह स्पष्ट लिखा है कि ”छच्त् के पास प्रत्येक उस व्यक्ति का आंकड़ा होगा जिनकी गणना ब्मदेने वचमतंजपवदे हुई थी जिसमें प्रत्येक उम्र के लोग शामिल है। इसके पास ठपवउमजतपब कंजं और न्प्क् संख्या, उन सबका होगा जो 15 वर्ष या उससे ऊपर के है। त्महपेजतंत ळमदमतंस और ब्मदेने ब्वउउपेेपवदमे के द्वारा छंजपवदंस प्कमदजपजल ब्ंतके सभी ष्न्ेनंस तमेपकमदजश्ेष् को चरणबद्ध तरीके से दिया जाएगा। इसकी शुरूआत तटीय गांवों  और तटीय शहरों से होगी। उसके पश्चात् पूरे देश को निपटाया जाएगा।
 
हाल के दशक में, देशवासियों का पहचान पत्र एवं अंक मुहैया कराने का एक इतिहास है जिसे आधार संख्या से जोड़ कर देखना समीचीन है। जर्मनी में नाजि पार्टी के सत्तारूढ़ होने से पहले इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स ;प्ठडद्ध जनगणना के काम में लिप्त थी। यह काम करते हुए  प्ठड ने यहूदियों को चिन्हित कर उनका एक डाटाबेस बना लिया।  प्ठड उन दिनों पंच कार्ड तकनीकी पर काम करता था जो कंप्यूटर की पूर्ववर्ती तकनीक थी। इसके जरिए उसने यहूदियों की निशानदेही जनसंख्या का वर्गीकरण प्रणाली द्वारा कर लिया। इसी डाटाबेस को बाद में नाजि पार्टी को उपलब्ध कर दिया गया। जिसके कारण मानवीय विनाश को अंजाम दिया गया। नाजीओ ने यहूदी के शरीर पर नंबर गुदवा दिए थे निशानदेही के लिए वांशिगटन डी.सी. स्थित होलोकास्ट म्युजियम (मानव विनाश संग्रहालय) में प्ठड की होलोरिथ डीरदृप्प् कार्ड सार्टिंग मशीन आज भी मौजूद है। अब प्ठड विश्व बैंक के ई-ट्रांसफार्म इनिसियेटिव का हिस्सा है जिसके तहत निलेकणी, पिट्रोदा, च्रंदमौली और रघुरमन अपनी योजनाओं को लागू कर रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार भविष्य में होने वाले दुरुपयोग को रोकने के संबंध में कोई आश्वासन भी नहीं दे सकती। किसी भी प्रकार का आश्वासन विश्वसनीय नहीं होगा।
 
इन सारी योजनाओं और प्रस्तावित विधेयकों की गुत्थी डीएनए प्रोफाइलिंग बिल, 2007 से भी जुड़ी है। ‘शरीर के पदार्थों  का डिऑक्सीराइबोस न्युक्लीइक एसीड ;डीएनएद्ध विश्लेषण एक ताकतवर तकनीकी है जिससे उसके स्रोत का पता और जैविक संबंध की पहचान होती है। डीएनए विश्लेषण से संवेदनशील सूचनाएं प्राप्त होती हैं जसके गलत प्रयोग से व्यक्ति एवं समाज का नुकसान हो सकता है।’ ऐसा डीएनए प्रोफाइलिंग ;निशानदेहीद्ध विधेयक के पृष्ठ संख्या 3 पर लिखा है। इस विधेयक में डीएनए के आकड़ांे के प्रबंधन के लिए डीएनए डेटा बैंक मैेेनेजर की नियुक्ति का भी प्रावधान है। डीएनए डेटा बैंक वह बैंक जिससे कंप्यूटरीकृत कर डीएनए की निशानदेही को संग्रहित करने और उसके रख-रखाव के लिए बनाया जाएगा।
 
डीएनए बैंक में जिन आंकड़ों को रखा जाएगा उनमें खून, वीर्य, मूत्र, शरीर के निजी स्थानों के बाल, दांत की संरचना, आदि शामिल है जिसे विधेयक में इंटीमेट बॉडी सैंपल’ कहा गया है। इस विधेयक में ‘इंटीमेट फारेंसीक प्रासीजर’ का भी प्रावधान है जिसके तहत शरीर के उन क्षेत्रों की जांच का जिक्र है जिसमें गुप्तांग, वक्ष स्थल आदि भी शामिल है। यह विधेयक अपनी प्रस्तावना में ही यह साफ कर देता है कि डीएनए निशानदेही का कानूनी उद्देश्य यह है कि वह आपराधिक एवं गैर-अपराधिक मामलो में पहचान तय करे। यह विधेयक बायोटेक्नोलॉजी विभाग, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित है। इस संबंध में प्रबंधन एवं संचालन की सारी शक्ति केंद्रीय सरकार में निहीत है। 
इस विधेयक में शरीर के अंगों के अदान प्रदान का भी जिक्र है।
 

इस संबंध में प्ठड नैनो तकनीक को डीएनए शृंखला से जोड चुका है। गरीबों को फायदा पहुंचाने के दावों को ढाल बनाकर विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना पर टिप्पणी करते हुए काउंसिल फॉर साइटीफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च के एक वैज्ञानिक ने खुलासा किया कि भूख और कुपोषण के कारण बहुतेरे भारतवासियों के शरीर में जैवमापन आंकड़े नहीं है इसलिए उनके लिए डीएनए तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। एक विचार यह भी सामने आया है कि पूरी विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना को डीएनए तकनीक के जरिए ही क्रियान्वित किया जाए।
 
विशिष्ट पहचान अंक एक ऐसी योजना है जिससे सभी देशवासियों   की जानकारी एक कंद्रीकृत डेटाबेस में इकट्ठा की जाएगी। यह अंक देशवासियों के लिए है जिसमें गेर-नागरिक भी शामिल होंगे। यह नागरिक पहचान अंक नहीं है। ब्रिटेन, न्ण्ज्ञ में 2010 के आम चुनावों के प्रचार के दौरान विपक्षी दलों ने अपने घोषणा पत्र में वायदा किया था कि टोनी ब्लेयर की लेबर पार्टी की पहचान पत्र योजना को खत्म करेंगे। 

विप्रो के जून 2009 के दस्तावेज में ब्रिटेन की इसी परियोजना को
अनुकरणीय बताया गया था। अब जबकि ब्रिटेन ने उसे रद कर दिया है, तो विप्रो की चुप्पी बताती है कि उनकी बोलती बंद हो गई है। मगर अप्रैल 2011 में विप्रो ने बोली लगाकर प्राधिकरण से एक ठेका ले लिया है जिसके बारे में अन्य कंपिनयां भी सवाल उठा रही है। यह विप्रो वही कंपनी है जिसने 2006 के आसपास विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण पर एक रिपोर्ट योजना आयोग को सौंपी थी।
 
कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार देशवासियों को और उनसे जुड़े जानकारियों के विश्व बाजार में उपलब्ध कराने की मंशा से इस परियोजना को लागू कर रही है।

बहुतेरे ईसाई धर्मालंबियों की मान्यता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब मनुष्यों को अपने सिर पर या कलाई पर कोई निशान या संख्या गुदवानी पड़ेगी जिससे उन्हें खरीद फरोख्त की वैश्विक व्यवस्था में शामिल कर लिया जाएगा। यह ईसाइयों के धर्मग्रंथ बाईबिल  में की गई भविष्यवाणी है। यह उधरण बाईबिल न्यू टेस्टामेंट के 13वें अध्याय से हैं। इस धर्मग्रंथ में शैतान की निशानदेही का जिक्र आठ बार आता है।
 
क्या कांग्रेस की सरकार अपने देश की व्यवस्था में इस भविष्यवाणी को सच साबित करने के लिए प्रयत्नरत है। बाईबिल के ही 19वें अध्याय में जिक्र है कि इस शैतान को जीत लिया जाता है और उसका खात्मा कर दिया जाता है।
 
सारा इतिहास समकालीन इतिहस है। इस इतिहास के मद्देनजर ब्रिटेन, ऑस्टेªलिया, चीन, कनाडा, जर्मनी और फिलीपिंस की सरकारों ने अपने देशवासियों के अधिकारों की सुरक्षा एवं सम्मान को बचाने के लिए ऐसी परियोजना को त्याग दिया है।
 
भारत के पूंजीपतियों की मौजूदगी में, मार्च, 2011 में प्रधानमंत्री ने अपने
भाषण में कहा कि 115 साल बाद, न्ै। को पीछा करते हुए, चीन एक बार फिर दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादन केंद्र बन गया। उन्होंने कहा कि उनको विश्वास है कि भारत भी वहां तक पहुंचा जाएगा। उन्होंने कहा कि उनकी उंगलियां भारत की नसों पर है। ऐसा लगता है कि मनमोहन सिंह ऐसा समझते हैं कि देशवासियों की निशानदेही से ही वे उस मुकाम तक पहुंचेगे।