मजदूर जिसने बयां की 'आधार' की कहानी
नवभारत टाइम्स | Feb 25, 2013, 06.52PM IST
एसपी रावत
कुरुक्षेत्र।। कंप्यूटर ने एक ओर जहां इंसान के कई कामों को आसान बना दिया है, वहीं दिन-रात मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालने वाले हजारों मजदूरों के लिए यह मुसीबत बन गया है। कंप्यूटर मजदूरों के हाथों की उन लकीरें को नहीं पढ़ पा रहा है जो रात-दिन मजदूरी करने के बाद धुंधली पड़ गई हैं।
हरियाणा के यमुनानगर जिले के मजदूरों को उस वक्त निराशा हाथ लगी जब अधिकारियों ने कहा कि जब तक कंप्यूटर उनके हाथों की लकीरों को नहीं पढ़ेगा तब तक उनका 'आधार कार्ड' नहीं बन सकता।
गौरतलब है कि आजकल पूरे देश में आधार कार्ड बनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। उसी के तहत यमुनानगर जिला में भी जगह-जगह पर आधार कार्ड बनाने का काम चल रहा है। आधार कार्ड बनाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है कि काम करते-करते मेहनतकश लोगों के हाथों की रेखाएं ही मिट गई हैं। इन हस्तरेखाओं को ही पैमाना मानकर आधार कार्ड बनाया जा रहा है।
अधिकारियों का कहना है कि बार-बार मजदूरों की हस्तरेखाएं लेने की कोशिश की गई, लेकिन कंप्यूटर पर रेखाएं न दिखने की वजह से उनका आधार कार्ड नहीं बन सकता। अब इसे मजदूरों की किस्मत का खेल कहें या मजबूरी? क्योंकि दिनरात मेहनत कर जो हाथ झोंपड़ी से लेकर महल तक का निर्माण करते हैं आज उन्हें ही उनके हक से महरूम रखा जा रहा है।
आधार कार्ड बनाने वाले कर्मचारी कहते हैं कि जब इन मजदूरों के हाथ की उंगलियों के निशान लेने के लिए इनके हाथों को कंप्यूटर पर रखा जाता है तो कोई रेखा नजर नहीं आती है। मजदूर दर्शन सिंह और राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि इसमें हमारा तो कोई कसूर नहीं है। हम तो अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मेहनत मजदूरी करते हैं। देश भर में चल रहे निर्माण कार्यों में मजदूरों की अहम भूमिका है। अगर हम अपने हाथ की रेखाओं को देखेंगे तो हमें कोई मजदूरी पर नहीं रखेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार को कोई ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उन्हें भी आधार कार्ड का लाभ मिले सके। उधर, यमुनानगर के डीआईओ रमेश गुप्ता का कहना है कि यूनिक आइडेंटिफिकेशन के लिए आधार कार्ड बनाए जा रहे हैं और इसके लिए आइब्रोज़, फिंगरप्रिंट और आईडी प्रूफ की जरूरत होती है। मजदूरों के आधार कार्ड बायॉमैट्रिक्स स्कैन न होने के कारण नहीं बन पा रहे हैं लेकिन यूआईडी के दूसरे वर्जन में यह कमी दूर कर ली जाएगी। भारत में सबके आधार कार्ड बनेंगे, हां इसमें कुछ समय लग सकता है।
उन्होंने बताया कि यमुनानगर में 10 से 12 जगहों के अलावा कई इंस्टिट्यूट में भी आधार कार्ड बन रहे हैं। भविष्य में डायरेक्ट ट्रांसफर स्कीम के तहत एससी और ओबीसी बच्चों का स्टाइपेंड उनके खाते में आएगा। उन्होंने बताया कि यमुनानगर में अब तक लगभग डेढ़ से दो लाख आधार कार्ड बन चुके हैं। खासतौर पर यमुनानगर और पानीपत में मजदूरों की संख्या काफी अधिक है। फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि अपराध के मामले में 15-20 प्रतिशत लकीरें आने से भी काम चल जाता है लेकिन आधार कार्ड के मामले में यह नियम लागू नहीं है।
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Comments below
loot machi hai, loot का कहना है :
26/02/2013 at 07:56 AM
अंधा पीसे कुत्ता खाए , एह बात तो जग जाहिर है की मेहनतकश मजदूरी करने वेल लोगों के फिंगर प्रिंट बदल जाते हैं , पता नहीं सरकार और इसके करमचारी और सलाहकार सोते रेहटे हैं या किसी भी प्रॉजेक्ट की लागत बढते रेहटे हैं . धन्या हो इन सरकारी और प्राइवेट कोम्पनियों का जिनको इतनी छोटी सी जानकारी नहीं
Izhar H. Khan, Riyadh का कहना है :
25/02/2013 at 11:27 PM
हाथों की लकीरें तो क़िस्मत बताती हैं. भारतीय मज़दूर की इतनी क़िस्मत कहन की उसके हाथ में किस्मत की लकीरें भी हों.
ram lal, dilli का कहना है :
25/02/2013 at 09:19 PM
कार्ड बनाने का भी बडिया गोरख धंदा है. कभी ए कार्ड कभी वो कार्ड. इसमे जम के चांडी होती है कार्ड बनाने वालो की.
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Vinay, Durg का कहना है :
25/02/2013 at 08:59 PM
वो कहते थे तुम्हारी किस्मत का 'आधार' हम बनाएँगे, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नही होते.
balkrishna vyas, ratlam alote का कहना है :
25/02/2013 at 08:56 PM
आज अगर स्वामिविवेकानंदजी जिवित होते तो शायद उनका भी आधार कार्ड अभी विचाराधीन ही रहता !
mohd nazim ansari, new delhi का कहना है :
25/02/2013 at 08:36 PM
कुदरत का यही तो करिश्मा है उनके हाथों में तो पहले से ही आधार रेखा नहीं है तभी तो बे चारे द्र दर की ठोकर खाते फिरते हैं
ashok kumar dhir, phagwara---punjab का कहना है :
25/02/2013 at 07:57 PM
काँच के महलों मे रह कर आज तो हो खुश हो बहुत,,,,क्या करोगे कल अगर पत्थर उछाले जायेंगे ,,,,गुमशुदा इंसानियत को ढूंढने के वास्ते ,,,,,,,सुन रहे हैं अब समंदर भी खंगाले जायेंगे,,,,,रोटियाँ सूखी इन्हें दें आप शर्मिन्दा ना हों,,,,इतने भूखे हैं कि ये पत्थर पचा ले जायेंगे
Vijay, Ranchi का कहना है :
25/02/2013 at 07:42 PM
बुजुर्गों और मेहनतकशों के साथ यह समस्या आ रही है. वैसे भी हाथ की रेखाएं या आँखों की पुतलियों का रेकॉर्ड रखने का कोई औचित्य नहीं बनता है. सरकार जिस ढर्रे पर चल रही है इन का दुरुपयोग कभी भी कर सकती है. आधार कार्ड के बहुत सारे पैमाने अतार्किक और स्वभाविक न्याय के विरुद्ध हैं.
jp, ncr का कहना है :
25/02/2013 at 07:24 PM
इस मशीन में आग बॉल दो, शायद गर्म होकर पढ ले. अरे किसान-मजदूरों जागों और इस देश से भ्रष्ट/ निकम्मे शासन को उखाड़ दालों नहीं तो ए तुम्हें मज़दूरी कम देकर, तुमहारा खून चूसते रहेंगे और अभी तक तो भाग्य की लकीर ही मिटी थी अब हाथ की लकीर मिटाने की बारी आ गयी है. तुमारी मज़दूरी मारकर सब्सिडी के बतौर त्तुमहारी झोली में भिक्षा डाल रहे हैं. अगर किसान-मजदूर को उसकी मेहनत का पैसा मिला होता तो आज किसी सब्सिडी की उन्हें जरूरत न होती, हाँ लेकिन कॉर्पोरेट्स और पॉलिटिशियन्स की तिजौरी ठूस-ठुसकर न भरी होती, न ही देश का 1456 बिलियन डॉलर्स स्विस बैंक में भारत का काला धन जमा होता. अबकि बार चुनाव में तय करा लो कि इस ग़ुलामी से बाहर निकलना है कि हाथ की लाईनें ही मितवाणी हैं.