In 2009, I became extremely concerned with the concept of Unique Identity for various reasons. Connected with many like minded highly educated people who were all concerned.
On 18th May 2010, I started this Blog to capture anything and everything I came across on the topic. This blog with its million hits is a testament to my concerns about loss of privacy and fear of the ID being misused and possible Criminal activities it could lead to.
In 2017 the Supreme Court of India gave its verdict after one of the longest hearings on any issue. I did my bit and appealed to the Supreme Court Judges too through an On Line Petition.
In 2019 the Aadhaar Legislation has been revised and passed by the two houses of the Parliament of India making it Legal. I am no Legal Eagle so my Opinion carries no weight except with people opposed to the very concept.
In 2019, this Blog now just captures on a Daily Basis list of Articles Published on anything to do with Aadhaar as obtained from Daily Google Searches and nothing more. Cannot burn the midnight candle any longer.
"In Matters of Conscience, the Law of Majority has no place"- Mahatma Gandhi
Ram Krishnaswamy
Sydney, Australia.

Aadhaar

The UIDAI has taken two successive governments in India and the entire world for a ride. It identifies nothing. It is not unique. The entire UID data has never been verified and audited. The UID cannot be used for governance, financial databases or anything. It’s use is the biggest threat to national security since independence. – Anupam Saraph 2018

When I opposed Aadhaar in 2010 , I was called a BJP stooge. In 2016 I am still opposing Aadhaar for the same reasons and I am told I am a Congress die hard. No one wants to see why I oppose Aadhaar as it is too difficult. Plus Aadhaar is FREE so why not get one ? Ram Krishnaswamy

First they ignore you, then they laugh at you, then they fight you, then you win.-Mahatma Gandhi

In matters of conscience, the law of the majority has no place.Mahatma Gandhi

“The invasion of privacy is of no consequence because privacy is not a fundamental right and has no meaning under Article 21. The right to privacy is not a guaranteed under the constitution, because privacy is not a fundamental right.” Article 21 of the Indian constitution refers to the right to life and liberty -Attorney General Mukul Rohatgi

“There is merit in the complaints. You are unwittingly allowing snooping, harassment and commercial exploitation. The information about an individual obtained by the UIDAI while issuing an Aadhaar card shall not be used for any other purpose, save as above, except as may be directed by a court for the purpose of criminal investigation.”-A three judge bench headed by Justice J Chelameswar said in an interim order.

Legal scholar Usha Ramanathan describes UID as an inverse of sunshine laws like the Right to Information. While the RTI makes the state transparent to the citizen, the UID does the inverse: it makes the citizen transparent to the state, she says.

Good idea gone bad
I have written earlier that UID/Aadhaar was a poorly designed, unreliable and expensive solution to the really good idea of providing national identification for over a billion Indians. My petition contends that UID in its current form violates the right to privacy of a citizen, guaranteed under Article 21 of the Constitution. This is because sensitive biometric and demographic information of citizens are with enrolment agencies, registrars and sub-registrars who have no legal liability for any misuse of this data. This petition has opened up the larger discussion on privacy rights for Indians. The current Article 21 interpretation by the Supreme Court was done decades ago, before the advent of internet and today’s technology and all the new privacy challenges that have arisen as a consequence.

Rajeev Chandrasekhar, MP Rajya Sabha

“What is Aadhaar? There is enormous confusion. That Aadhaar will identify people who are entitled for subsidy. No. Aadhaar doesn’t determine who is eligible and who isn’t,” Jairam Ramesh

But Aadhaar has been mythologised during the previous government by its creators into some technology super force that will transform governance in a miraculous manner. I even read an article recently that compared Aadhaar to some revolution and quoted a 1930s historian, Will Durant.Rajeev Chandrasekhar, Rajya Sabha MP

“I know you will say that it is not mandatory. But, it is compulsorily mandatorily voluntary,” Jairam Ramesh, Rajya Saba April 2017.

August 24, 2017: The nine-judge Constitution Bench rules that right to privacy is “intrinsic to life and liberty”and is inherently protected under the various fundamental freedoms enshrined under Part III of the Indian Constitution

"Never doubt that a small group of thoughtful, committed citizens can change the World; indeed it's the only thing that ever has"

“Arguing that you don’t care about the right to privacy because you have nothing to hide is no different than saying you don’t care about free speech because you have nothing to say.” -Edward Snowden

In the Supreme Court, Meenakshi Arora, one of the senior counsel in the case, compared it to living under a general, perpetual, nation-wide criminal warrant.

Had never thought of it that way, but living in the Aadhaar universe is like living in a prison. All of us are treated like criminals with barely any rights or recourse and gatekeepers have absolute power on you and your life.

Announcing the launch of the # BreakAadhaarChainscampaign, culminating with events in multiple cities on 12th Jan. This is the last opportunity to make your voice heard before the Supreme Court hearings start on 17th Jan 2018. In collaboration with @no2uidand@rozi_roti.

UIDAI's security seems to be founded on four time tested pillars of security idiocy

1) Denial

2) Issue fiats and point finger

3) Shoot messenger

4) Bury head in sand.

God Save India

Friday, April 14, 2017

11042 - निजता का 'आधार' कमजोर है: Outlook Hindi



संभव है भारत में ऐसे ‌द‌िन आएं क‌ि नाम के बजाय आधार पहचान बन जाए
                         PHOTOGRAPHY BY अनूप सलकड़े

अपनी जिंदगी को 'खुली किताब' कहने वाले अब वास्तविक रूप से इस मुहावरे के मायने समझ रहे हैं। यह दौर वास्तव में खुली किताब का दौर है। कोई भी कहीं भी पूरी तरह खुल सकता है। किसी की भी जानकारी कहीं भी सार्वजनिक हो सकती है। अब किसी की भी निजता मात्र एक 'क्लिक' दूर है। भारतीय नागरिक की निजता 12 अंकों में सिमट गई है। अगर यह नंबर किसी की जानकारी में है तो नाम, उम्र, पता, माता-पिता का नाम छोडि़ए, वह यह पता लगाने में सक्षम है कि किसी व्यक्ति ने कितना इनकम टैक्‍स रिटर्न फाइल किया, कब कहां यात्रा की और यहां तक कि कब और किस से पैसे का लेन-देन किया। यह संभव है उस आधार कार्ड के जरिए जिसे सरकार ने परोक्ष रूप से अनिवार्य कर दिया है। सरकार ने अपनी कई कल्याणकारी  और गैर कल्याणकारी योजनाओं के साथ आधार को जोड़ दिया है। सरकार कहती रही है कि आधार एक पहचान पत्र मात्र है और भारतीयों को एक ऐसे पहचान पत्र की जरूरत है जो सभी जगह मान्य हो। जबकि राशन कार्ड, मतदाता परिचय पत्र, पैन कार्ड, पासपोर्ट आदि पहचान पत्र के रूप में पहले आसानी से इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। अब इस नए 'पहचान पत्र' को धीरे-धीरे जरूरी दस्तावेज बनाया जा रहा है, कई जगह बनाया जा चुका है।
हाल ही में आधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कल्याणकारी योजनाओं में आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है। हालांकि इस पर अभी अदालत का अंतिम फैसला नहीं आया है। अदालत ने यह भी कहा कि आधार कार्ड के संबंध में संविधान पीठ पहले ही आदेश जारी कर चुकी है कि कल्याणकारी योजनाओं में आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है। बावजूद इसके सरकार सार्वजनिक योजनाओं को आधार से लिंक करने का काम जोर-शोर से कर रही है। आधार को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने के साथ निजता बड़ा मसला है जिस पर बात होती है। हाल ही में जब क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की जानकारी सार्वजनिक हो गई तो इस मुद्दे ने फिर जोर पकड़ा। आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने उस कंपनी को 10 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। वह कंपनी अब यूआईडीआईए के लिए 10 साल काम नहीं कर सकेगी। लेकिन उस कंपनी पर कोई आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा? इस मामले में सजा का क्या प्रावधान है या फिर जो डेटा उसके पास पहले से मौजूद है उसका क्या होगा जैसे प्रश्न अनुत्तरित हैं। अभी तक डेटा इकट्ठा करने वाली कंपनी पर आपराधिक मामला दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है।
हालांकि सन 2009 में जब आधार की नींव रखी गई थी तब इसका दर्जा पहचान पत्र का ही था। लेकिन अब सरकार आधार को कई योजनाओं, विभिन्न सेवाओं जैसे- यात्रा टिकट बुक कराने, पैन कार्ड या पासपोर्ट बनवाने, इलाज के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराने में अनिवार्य कर रही है। इससे हर नागरिक (यदि सरकार चाहे तो) 24 घंटे सरकार की निगरानी में तो है ही उसकी निजी जानकारी भी उनके पास है जिसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इससे व्यक्ति की निजता खतरे में है। इस पर सरकार भी अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं दे पाई है। अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा कहती हैं, 'सरकार ने आधार कार्ड को ऐसे बताया जैसे इससे पहले भारतीयों के पास अपनी पहचान स्थापित करने का कोई और विकल्प था ही नहीं। यूआईडीआईए का कहना था कि भारतीयों के पास पहचान पत्र नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं है। हमने पीईईपी सर्वेक्षण में पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी राशन कार्ड, मतदाता परिचय पत्र या राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का कार्ड था। सरकार का दावा है कि पहचान पत्र के अभाव में लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता था। लेकिन सच्चाई यह है कि छत्तीसगढ़ में बिना आधार कार्ड के सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अच्छे से स्थापित किया गया है। रीतिका कहती हैं, 'सरकार का कहना है कि इससे भ्रष्टाचार रुकेगा। राशन की चोरी रुकेगी। पेंशन सही व्यक्ति तक पहुंचेगी। लेकिन सरकार ने उस व्यक्ति पर कार्रवाई का कोई इंतजाम नहीं किया है जो राशन बांटता है। यदि दुकानदार या डीलर ही नियत मात्रा से कम अनाज तौले, धौंस देकर कम मात्रा दे तो क्या होगा। सरकारी दुकानों से राशन लेने वाले पहले रजिस्टर पर अंगूठा लगाते थे अब आधार की मशीन पर अंगूठा लगाते हैं। व्यवस्था वही है बस तरीका बदल गया है। जबकि सरकार को हर व्यक्ति को पूरा हक दिलाने के लिए कदम उठाने चाहिए।' आधार सुनवाई के मसले पर वह कहती हैं, 'अदालत कई बार कह चुकी है कि वह इस मसले को तत्काल देखेगी। लेकिन सुनवाई लगातार टाली जा रही है। अदालत के पास सिखों पर बनने वाले चुटकुलों और राष्ट्रीय गान के मसले पर सुनवाई करने के लिए जज हैं और यहां लोगों की निजता दांव पर है।' जब भी आधार कार्ड की बात होती है सरकार कल्याणकारी योजनाओं की आड़ ले लेती है। पिछले साल शुरू हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लिए भी अब आधार को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे पता चलता है कि सरकार लाभ उस व्यक्ति को ही देना चाहती है जिसके पास आधार हो। कुछ और सवाल भी अनुत्तरित हैं। आयकर रिटर्न के लिए आधार को अनिवार्य किया गया है मगर भारत में काम करने वाले विदेशियों के पास आधार नहीं होता। वे अपना आयकर रिटर्न कैसे दाखिल करेंगे क्योंकि आईटीआर तो उन्हें भी भरना होता है।
सरकार के पास आधार के बचाव को लेकर अपने तर्क हैं। यूआईडीएआई से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि आधार आने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है। सरकारी स्कूलों में हर छात्र के एवज में अध्यापकों को कुछ राशि दी जाती है। स्टेशनरी और मिड डे मील का भी बजट छात्रों की संख्या पर निर्भर है। ऐसे में कई सरकारी स्कूलों में छात्रों की वास्तविक संख्या ज्यादा दिखा कर अनुदान लिया जाता था। जब छात्रों को आधार संख्या से जोड़ दिया गया तो स्कूलों की अनुदान राशि अपने आप घट गई। इससे सरकार को राजस्व में फायदा हुआ। यह पैसा टैक्स देने वाले भारतीय नागरिकों का ही है। आधार में दी जा रही निजी जानकारी और इसके सार्वजनिक हो जाने या देश से बाहर चले जाने पर जवाब के बदले उनका सवाल होता है, अभी तक ऐसा हुआ तो नहीं। इससे सवाल उठता है कि क्या सरकार ऐसा होने का इंतजार कर रही है। जहां तक ड्राइविंग लाइसेंस का मसला है, सबसे अच्छा तरीका यह हो कि सभी आरटीओ दफ्तरों को कंप्यूटराइज कर एक-दूसरे से जोड़ दिया जाए। 
सिटिजंस फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज के सदस्य गोपाल कृष्ण कहते हैं, 'डेटा लीक हो रहा है इसके दस्तावेजी प्रमाण भी हैं। आरटीआई से ऐसी कंपनियों के नाम और कागजात निकाले गए हैं जो बताते हैं कि आधार कार्ड बनाने के लिए विदेशी कंपनी के साथ करार पर हस्ताक्षर हुए हैं। इनके प्राइवेसी डेटा सेक्‍श्‍न में साफ-साफ लिखा हुआ है कि कंपनी बायोमेट्रिक डेटा को इकट्ठा करने, इस्तेमाल, हस्तांतरण और अन्य उपयोग कर सकती है। इसी के सेक्‍शन 15 (3) में लिखा है कि यह डेटा एल वन सोल्यूशन (अन्य कंपनियां भी) सात साल से ज्यादा अपने पास नहीं रख सकती हैं। यह केवल निजता से जुड़े मसले से ज्यादा देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। किसी कंपनी के पास इतने साल आपके देश के नागरिक की जानकारी है तो भविष्य में वह यदि सेना अधिकारी बनता है, वैज्ञानिक बनता है, देश का कोई और अहम पद संभालता है तो विदेशी कंपनी के पास उसकी पूरी जानकारी पहले से उपलब्‍ध होगी।' रीतिका खेड़ा कहती हैं, 'सरकार ने बहुत चतुराई से डेटा को दो भागों में बांट दिया है। एक निजी जानकारी जैसे उंगलियों के निशान, पुतलियों की छवि, दूसरी निजी जानकारी जैसे नाम, पता आदि। नाम, पता आदि को डेमोग्राफिक एक्ट के तहत सार्वजनिक करने की अनुमति है। इसी से पता चलता है कि सरकार ताक-झांक करने के लिए एक सूराख अपने पास रखना चाहती है।









डिजिटल उपनिवेशवाद का साम्राज्य
गोपाल कृष्ण
सत्रहवें मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने 4 अप्रैल 2012 को तत्कालीन गृह सचिव राजकुमार सिंह (वर्तमान में भाजपा सांसद) को मतदाता पहचान कार्ड को विशिष्ट पहचान संख्या/आधार से जोड़ने के संबंध में पत्र लिखा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में आयोग ने अपने आदेश को संशोधित कर स्पष्ट कर दिया कि विशिष्ट पहचान संख्या/आधार और मतदाता पहचान कार्ड को साथ नहीं जोड़ा जाएगा। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ईवीएम पर उठे सवालों के जवाब में आयोग सूचित करता है कि ईवीएम के 'प्रत्येक कंट्रोल यूनिट में एक विशिष्ट आईडी नंबर होता है।' यदि ईवीएम का विशिष्ट आईडी नंबर, विशिष्ट आधार और मतदाता पहचान कार्ड जुड़ जाते हैं तो मतदाता की गोपनीयता और गुप्त मतदान के सिद्धांत, लोकतांत्रिक मूल अधिकार लुप्त हो जाएंगे।
कोर्ट के आदेश के संदर्भ में चुनाव आयोग ने 13 अगस्त, 2015 को अपने 27 फरवरी, 2015 के आदेश में संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिए बायोमेट्रिक यूआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण, भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में डालने की क्रिया तत्काल प्रभाव से बंद करनी होगी और आगे से कोई भी आधार आंकड़ा किसी भी संस्थान या डेटा हब से एकत्र नहीं किया जाएगा। सरकार की बायोमेट्रिक्‍स समिति की रिपोर्ट 'बॉयोमेट्रिक्‍स डिजाइन स्टैंडर्ड फॉर यूआईडी एप्लिकेशंस' की अनुशंसा में कहा गया है कि 'बायोमेट्रिक्‍स आंकड़े राष्ट्रीय संपत्ति हैं और उन्हें अपने मूल विशिष्ट लक्षण में संरक्षित रखना चाहिए।' हर रोज अमेरिकी सरकार के 24 विभाग 191 देशो में 71,000 लोगों की मदद से 169 दूतावासों के 276 सुरक्षित महलों से आज के सूचना संचार आधारित साम्राज्य का कारोबार चलाते हैं। जनगणना से लेकर जनता की निजी संवेदनशील सूचनाएं, उंगलियों के निशान, आंखों की पुतलियों की छवि, आवाज के नमूने, डीएनए, मोबाइल, इंटरनेट और साइबर क्लाउड पर स्थित आंकड़ों तक की जानकारी को एकत्र और सूचीबद्ध करके सबको असुरक्षित कर रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संसदीय समिति ने अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी द्वारा किए जा रहे खुफिया हस्तक्षेप और विकीलीक्स और एडवर्ड स्नोडेेन के खुलासे और साइबर क्लाउड तकनीक और वैधानिक खतरों के संबध में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जे सत्यनारायण (वर्तमान में चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार) से पूछा था।
हैरत की बात ये सामने आई कि सचिव को विदेशी सरकारों और कंपनियों द्वारा सरकारी लोगों और देशवासियों के अधि-आंकड़ा (मेटा डाटा) एकत्र किए जाने से कोई परेशानी नहीं थी। इस संदर्भ में अधि आंकड़ा के एकत्रीकरण का अर्थ है कि संदेश के आगमन बिंदु, प्रस्थान बिंदु, संदेश की मंजिल और संदेश मार्ग के बारे में जानकारी को किसी खुफिया संस्था द्वारा प्राप्त करना। इन्होंने समिति को बताया कि भारत सरकार ने अमेरिकी सरकार से स्पष्ट जिक्र किया है कि भारतीय दृष्टि से संदेश सामग्री पर आक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जब दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति ने यह धमकी भरा दावा किया कि उनके पास 'सबसे लंबे समय तक की मेमोरी’ है तब यह स्पष्ट हुआ कि उनका दावा उनकी डिजिटल कंपनियों के मेमोरी बैंक पर आधारित है। ये कंपनियां अपने देश के हित में काम करने के लिए अमेरिकी पेट्रियाट एक्ट (देशभक्ति कानून), 2001 के कारण बाध्य हैं। आधार से जुड़े बायोमेट्रिक आंकड़े राष्ट्रीय धन हैं, जिसे विदेशी कंपनियों-सैगम मार्फी (फ्रांस), एक्सेंचर (अमेरिका) आदि के जरिए विदेशी सरकारों को सात साल के लिए मुहैया कराया जा रहा है।
(लेखक सिटीजंस फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज के सदस्य हैं और वित्त की संसदीय स्थायी समिति के समक्ष पेश हुए थे।)
अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या